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Black-White-Yellow Fungus Symptoms and Treatment: ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस में अंतर क्या है?

06:25 PM May 27, 2021 IST | Health OPD

Black-White-Yellow Fungus Symptoms and Treatment: देश भर में ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं अब फंगस के अलग-अलग वैरिएंट सामने आ रहे हैं। ब्लैक फंगस के बाद वाइट फंगस और अब येलो फंगस (Black-White-Yellow Fungus Symptoms and Treatment) के मामले भी सामने आ रहे हैं। लोगों में तीनों को समझना मुश्किल हो गया है। साथ ही इनका डर भी बढ़ गया है। इनसे डरने, घबराने की जरूरत नहीं बल्कि इन्हें समझने और एहतियात बरतने की जरूरत है। (Black-White-Yellow Fungus Symptoms and Treatment)

नई दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया (AIIMS Director Randeep Guleria) ने स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कांफ्रेंस में जानकारी देते हुए कहा कि फ़ंगल इंफ़ेक्शन को रंग के नाम से नहीं बल्कि उसके मेडिकल नाम से पुकारना चाहिए वरना इससे भ्रम फैल सकता है। फ़ंगल इंफ़ेक्शन के लिए कई शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं ब्लैक फ़ंगस, वाइट फ़ंगस, येलो फ़ंगस। फ़ंगस अलग-अलग अंगों पर अलग रंग का हो सकता है लेकिन हम एक ही फ़ंगस को अलग-अलग नाम दे देते हैं।

डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जिनकी इम्यूनिटी कम होती है, उनमें हम ज़्यादातर ये तीन इंफ़ेक्शन दिखते हैं- म्यूकॉरमायकोसिस (Mucormycosis), कैनडीडा (Candida),या एसपरजिलॉसिस (Aspergillosis) फ़ंगल। इनमें म्यूकॉरमाइकोसिस के सबसे ज़्यादा मामले हैं। ये वातावरण में पाया जाता है और संक्रामक नहीं है। ये 92-95 प्रतिशत उन मरीज़ों में मिला है जिन्हें डायबिटीज़ है या जिनके इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल हुआ है।

म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फ़ंगस
विशेषज्ञों के मुताबिक म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। ये फ़ंगस साइनस, दिमाग़ और फेफड़ों पर अटैक करता है। बहुत कम मामलों में गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक (इसमें पाचन तंत्र के सभी अंग शामिल होते हैं) में ये पाया जा सकता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, अगर ये इंफ़ेक्शन फेफड़ों या गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक में होता है तो यह ख़तरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण देर से सामने आते हैं। ये 50 फीसदी तक खतरनाक साबित हो सकता है।

ब्लैक फंगस के लक्षण

कैनडिडा (Candida) या वाइट फ़ंगस

म्यूकोरमाइसिस या ब्लैक फंगस के बाद कैनडिडा या वाइट फ़ंगस सामने आया। वाइट फंगस अक्सर कमज़ोर इम्यूनिटी वाले लोगों में देखने को मिलता है। या फिर डायबिटिक या बिना डायबिटिक और आईसीयू में लंबे समय तक रहे मरीज़ों में इसका ख़तरा ज्यादा हो सकता है। हालांकि, ये ब्लैक फंगस से कम घातक और कम ख़तरनाक है। अगर वाइट फंगस का संक्रमण खून में फैल जाता है तो ऐसी कंडिशन में ये खतरनाक साबित हो सकता है।

वाइट फंगस के लक्षण

इसके बचाव

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, किसी भी तरह के फ़ंगल इंफ़ेक्शन से बचने के लिए सबसे ज़रूरी है साफ़-सफ़ाई। कोरोना से ठीक होने के बाद लोगों को धूल-मिट्टी वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए। वहीं साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। जैसे हाथ धोना, ऑक्सीजन की ट्यूब साफ़ रखना, ऑक्सीजन सपोर्ट के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी स्टेरलाइज्ड हो तो बेहतर है। वहीं लोग कोरोना का इलाज करा रहे हैं, जिनमें कोरोना ठीक हो चुका है। अगर फ़ंगल इंफ़ेक्शन के लक्षण महसूस होते या दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

येलो फंगस या म्यूकरसेप्टिकल्स (Mucor Skeptics)

विशेषज्ञों के मुताबिक, येलो फंगस रेप्टाइल्स में पाया जाने वाला फंगस होता है, लेकिन यह पहला मौका है, जब यह इंसानों में पाया गया है। ब्लैक और वाइट फंगस के मुकाबले येलो फंगस ज्यादा खतरनाक होता है। ब्लैक फंगस जहां ब्रेन को प्रभावित करता है, वहीं वाइट फंगस लोगों के लंग्स पर अटैक करता है लेकिन येलो फंगस इन दोनों से खतरनाक है। हालांकि कुछ जानवरों में इस तरह का फंगस मिला है।

यलो फंगस के लक्षण

नाक का बंद होना
शरीर के अंगों का सुन्न होना
शरीर में टूटन होना और दर्द होना
कोरोना से ज्यादा शरीर में वीकनेस होना
हार्ट रेट का बढ़ जाना
शरीर में घावों से मवाद बहना
घावों का सही ना होना

यलो फंगस से बचाव

घर की और आसपास की साफ-सफाई का ध्यान रखें
कमजोर इम्युनिटी वालों की हाइजीन का खास ध्यान रखें
कोरोना से ठीक हुए मरीजों का विशेष ख्याल रखें
खराब या बासी खाने का प्रयोग न करें
घर पर नमी न होने दें क्योंकि फंगस नम जगहों पर ज्यादा एक्टिव होता है

https://www.youtube.com/watch?v=OAWPxSqqjPk

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