Premature baby: ऐसे करें प्रीमेच्योर शिशुओं की देखभाल
Premature baby: जब कोई शिशु गर्भावस्था के 37वें सप्ताह से पहले जन्म लेता है, तो उसे प्रीमेच्योर (अकाल) शिशु कहा जाता है। ऐसे शिशुओं को विशेष देखभाल और सतर्कता की आवश्यकता होती है क्योंकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हुआ होता। उनके अंग पूरी तरह विकसित नहीं होते, जिससे उन्हें संक्रमण, सांस लेने में कठिनाई और तापमान संतुलन जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, माता-पिता और देखभाल करने वालों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है।
1. अस्पताल में देखभालः
प्रीमेच्योर शिशुओं को सामान्यतः नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में रखा जाता है, जहां उनकी विशेष देखभाल की जाती है।
(1) इनक्यूबेटर में देखभाल
शिशु को इनक्यूबेटर में रखा जाता है ताकि उसके शरीर का तापमान नियंत्रित रहे। इसे संक्रमण से बचाने के लिए स्टरलाइज्ड वातावरण में रखा जाता है।
(2) सांस लेने में सहायता
कुछ शिशु स्वतंत्र रूप से सांस नहीं ले सकते, इसलिए उन्हें ऑक्सिजन सपोर्ट दिया जाता है। सीपीएपी (CPAP) मशीन का उपयोग किया जाता है जिससे उनके फेफड़ों में पर्याप्त ऑक्सिजन पहुंच सके।
(3) पोषण और फीडिंग
चूंकि प्रीमेच्योर शिशु दूध चूसने में सक्षम नहीं होते, इसलिए उन्हें नली (Feeding Tube) या IV ड्रिप के माध्यम से पोषण दिया जाता है। मां का दूध उनके लिए सबसे अच्छा होता है क्योंकि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
2. घर पर देखभाल
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी प्रीमेच्योर शिशु की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण होती है। माता-पिता को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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(1) तापमान का ध्यान रखें
शिशु का शरीर तापमान नियंत्रित नहीं कर सकता, इसलिए कमरे का तापमान गर्म और आरामदायक होना चाहिए। उन्हें अधिक ठंड या गर्मी से बचाने के लिए हल्के, परतदार कपड़े पहनाएं।
(2) स्तनपान और आहार
यदि शिशु सीधा स्तनपान नहीं कर सकता, तो डॉक्टर के निर्देशानुसार पंप किए गए दूध को स्पून, कप या फीडिंग ट्यूब से दें। मां का दूध न केवल पोषण प्रदान करता है बल्कि संक्रमण से भी बचाता है। फीडिंग का अंतराल छोटा रखें और धीरे-धीरे शिशु की क्षमता बढ़ाएं।
(1) संक्रमण से बचाव
प्रीमेच्योर शिशुओं की इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बहुत कमजोर होती है, इसलिए स्वच्छता बहुत जरूरी है। शिशु को छूने से पहले हाथ धोना अनिवार्य करें। घर में किसी को सर्दी-खांसी हो तो शिशु से दूर रखें। शिशु को बहुत अधिक लोगों से न मिलाएं, विशेष रूप से पहले कुछ महीनों में।
(2) नींद और सोने की स्थिति
शिशु को पीठ के बल (Back Sleeping Position) सुलाएं ताकि अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का खतरा कम हो। बहुत नरम गद्दे, तकिए या खिलौने बिस्तर में न रखें ताकि शिशु की सांस लेने में बाधा न आए।
(3) नियमित स्वास्थ्य जांच
डॉक्टर की सलाह के अनुसार टीकाकरण कराएं। शिशु के विकास, वजन और अन्य संकेतकों पर नजर रखें। किसी भी असामान्यता (सांस लेने में कठिनाई, त्वचा का रंग बदलना, दूध न पीना आदि) पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
3. माता-पिता के लिए मानसिक और भावनात्मक समर्थन:
(1) धैर्य और सकारात्मक सोच रखें
प्रीमेच्योर शिशु की देखभाल चुनौतीपूर्ण हो सकती है, इसलिए धैर्य बनाए रखें। खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए परिवार और दोस्तों का समर्थन लें।
(2) कंगारू केयर:
यह एक विशेष पद्धति है जिसमें माता-पिता शिशु को अपनी छाती से लगाकर रखते हैं। इससे शिशु को गर्माहट मिलती है, हार्ट रेट और सांस लेने की प्रक्रिया सुधरती है और मां-बच्चे का रिश्ता मजबूत होता है।
(3) माता-पिता की देखभाल भी जरूरी है
पर्याप्त नींद लें और पोषक आहार का सेवन करें। खुद को दोषी महसूस न करें और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर या काउंसलर से सलाह लें।
निष्कर्षः प्रीमेच्योर शिशु की देखभाल में धैर्य, सतर्कता और सही चिकित्सा मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अस्पताल से लेकर घर तक प्रत्येक चरण में सावधानी बरतनी जरूरी है ताकि शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से हो सके। यदि माता-पिता पूरी समझदारी, प्रेम और समर्पण से देखभाल करें, तो प्रीमेच्योर शिशु भी स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकता है।
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