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Silent heart attack symptoms: नींद में ही क्यों आता है

01:30 PM Mar 15, 2025 IST | Vijay Dadwal
silent heart attack symptoms  नींद में ही क्यों आता है

Silent heart attack symptoms: साइलेंट हार्ट अटैक एक खतरनाक स्थिति है, जो बिना किसी स्पष्ट लक्षण के होती है और कई बार व्यक्ति को इसकी भनक तक नहीं लगती। यह आमतौर पर नींद में ही क्यों आता है, इसके पीछे कई वैज्ञानिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैः
1. रात्रि की मेटाबॉलिजम प्रक्रिया (Metabolism at Night):
नींद के दौरान शरीर की गतिविधियां धीमी हो जाती हैं। हृदय की धड़कन और रक्तचाप भी सामान्य रूप से कम हो जाता है। हालांकि, यदि धमनियों में पहले से प्लाक (cholesterol buildup) जमा हो, तो यह स्थिति घातक हो सकती है। रात्रि के समय रक्त प्रवाह में कमी और ऑक्सिजन सप्लाई की बाधा से दिल के ऊतकों को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे साइलेंट हार्ट अटैक हो सकता है।
2. पैरासिम्पेथेटिक और सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम का प्रभावः
हमारा ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम दो भागों में बंटा होता है
सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (SNS): यह दिन में सक्रिय रहता है और हृदय गति को नियंत्रित करता है।
पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (PNS): यह रात के समय अधिक सक्रिय होता है और शरीर को आराम की स्थिति में ले जाता है।
रात में जब PNS अधिक सक्रिय होता है, तो हृदय गति और रक्तचाप सामान्य से भी अधिक गिर सकता है। यदि पहले से कोई हृदय संबंधी समस्या हो, तो यह स्थिति दिल के लिए घातक साबित हो सकती है।

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3. कोर्टिसोल और एड्रेनालिन का स्तरः
दिन में शरीर में कॉर्टिसोल (Cortisol) और एड्रेनालिन (Adrenaline) जैसे हॉर्मोन उच्च मात्रा में रहते हैं, जो दिल को सामान्य रूप से पंप करने में मदद करते हैं। लेकिन रात के समय इन हॉर्मोनों का स्तर गिर जाता है, जिससे खून की नलियां संकीर्ण हो सकती हैं और दिल पर अधिक दबाव पड़ सकता है, जिससे हार्ट अटैक हो सकता है।
4. ऑक्सिजन का स्तर और सांस से जुड़ी समस्याएं:
कई लोगों को स्लीप एप्निया (Sleep Apnea) नामक समस्या होती है, जिसमें सोते समय सांस लेने में रुकावट आती है। इससे शरीर में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है, जो दिल की धमनियों को प्रभावित कर सकती है और साइलेंट हार्ट अटैक का कारण बन सकती है।
फेफड़ों की कार्यक्षमता भी रात में थोड़ी धीमी हो जाती है, जिससे दिल को पर्याप्त ऑक्सिजन नहीं मिल पाती और इसका दुष्प्रभाव दिल पर पड़ता है।
5. नींद के दौरान शरीर की स्थिरताः
दिन में व्यक्ति जाग्रत अवस्था में रहता है और शरीर की हलचल बनी रहती है, जिससे रक्त संचार बेहतर रहता है। लेकिन रात में जब शरीर निष्क्रिय होता है, तो खून का दौरा धीमा हो जाता है। यदि धमनियों में पहले से ब्लॉकेज हो, तो दिल को खून की कमी महसूस हो सकती है और अचानक साइलेंट हार्ट अटैक हो सकता है।
6. रात में दर्द सहने की क्षमता अधिक होती हैः
साइलेंट हार्ट अटैक में सामान्य हार्ट अटैक की तरह तीव्र दर्द महसूस नहीं होता क्योंकि:
रात में मस्तिष्क एंडॉर्फिन और अन्य न्यूरोट्रांसमीटर छोड़ता है, जिससे दर्द का अहसास कम हो जाता है।
जब व्यक्ति गहरी नींद में होता है, तो मस्तिष्क बाहरी संकेतों को कम प्रतिक्रिया देता है, जिससे हल्के लक्षणों को अनदेखा कर दिया जाता है।
यही कारण है कि कई बार व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि वह हार्ट अटैक का शिकार हो चुका है।
7. ठंड का प्रभाव
रात के समय तापमान सामान्यतः कम हो जाता है, जिससे खून की नलियां सिकुड़ सकती हैं। खासतौर पर सर्दियों में, ठंडी हवा और शरीर का कम तापमान दिल पर अधिक दबाव डाल सकता है, जिससे साइलेंट हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
कैसे पहचाने कि आपको साइलेंट हार्ट अटैक हुआ है?
चूंकि इसमें स्पष्ट लक्षण नहीं होते, लेकिन कुछ संकेत हो सकते हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है:
सुबह उठने पर असामान्य थकान महसूस होना
हल्का सा सीने में दबाव या बेचैनी
पसीना आना और कमजोरी महसूस होना
जबड़े, गर्दन, पीठ या बाजू में हल्का दर्द रहना
अचानक सांस फूलनाः
यदि ऐसा लगे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और ECG, ब्लड टेस्ट या अन्य जांच करवाएं।
कैसे बचें साइलेंट हार्ट अटैक से?
रात में भारी भोजन न करेंः खासकर तली-भुनी और फैटी चीजें खाने से बचें।
नींद का सही पैटर्न बनाएंः रोज 7-8 घंटे की गहरी और आरामदायक नींद लें।
तनाव को कम करेः ध्यान और योग करें, जिससे नर्वस सिस्टम संतुलित रहेगा।
नियमित व्यायाम करेंः ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाए रखने के लिए हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें।
स्लीप एप्निया और अन्य सांस की समस्याओं का इलाज करवाएं यदि आपको खर्राटे लेने की समस्या है, तो डॉक्टर से सलाह लें।
धूम्रपान और शराब से बचेंः ये खून की नलियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
निष्कर्षः साइलेंट हार्ट अटैक नींद में इसलिए आता है क्योंकि इस दौरान शरीर की सभी प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं, हॉर्मोनल बदलाव होते हैं, ऑक्सिजन की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, और व्यक्ति को हल्के लक्षण महसूस नहीं होते। इसलिए हृदय को स्वस्थ रखने के लिए सावधानी बरतना आवश्यक है। नियमित जांच और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इस जोखिम को कम किया जा सकता है।

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